Tuesday, July 12, 2005

और नज्म़ जिन्दा रह गये

जिन्दगी थी, मस्ती भी थी,
दौलत थी, इक गश्ती भी थी ।

इक जवानी थी, रुबाब भी था,
दिवानी थी, इक ख्वाब भी था ।
Aur_Nazm_Jinda_Rah_Gaye_by_P_Piyush
हँसती गलियों में नकाब भी था,
रंगीनियों का एक शबाब भी था ।

जुमेरात शायद वह आबाद भी था,
जुम्मे के रोज़ वह बरबाद भी था ।

उस शाम साक़ी भी साथ न था ,
दो नज्म़ ग़ज़लों का बस याद था ।

Beautiful Gazal :).

Here again typos in second last and last para.

Rhicha
 
Lovely Gazal Prem. Now I can read all :-)
 
Rhicha ji,
Hope its correct now. Actually I am writing in Hindi after many years.
If any more correction required ?
Thanks again.

मनीष जी,
धन्यवाद श्री मान् ।
बधाई हो , जरा बताऐंगे कि यह कैसे संभव हुआ
 
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