Saturday, July 09, 2005

कविता की अर्थी

नून-तेल के दायरे से
निकली जब जिन्दगी ।

माल असबाब भरे पड़े थे
भविष्य के गोदामों में ।
kavita_ki_aarthi_by_P_Piyus.gif
महफिल की वाह वाही से
थके थे कान वहाँ पर ।

टकटकी लगा अब भी
चाँद को देख रहा था ।

कल की दिनचर्या बुनकर
आखिर जुलाहा सो गया ।

मस्जिद में बस नमाज पड़ी थी
इधर सपने में वह चीख पड़ा ।

देखा , कलमों के सेज
पर कविता की अर्थी थी ।


Beautiful poem! :)
And in second last line it's should be "padi" instead of "pangi" and "pada" in place of "panga". Isn't it. I think it's typos. And in second line has the same problem.
 
Rhicha ji,
Thanks for appreciating.

Yes I had been commiting the typos.
I am correcting all of such typos.
 
Post a Comment

<< Home