Wednesday, February 09, 2005

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।

सहस्र नामों के शब्दकोष से,

इतनी चिंतन-मनन के पश्चात्,

स्वंय को आश्वस्त करने हेतु ही सही

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।


तुम्हारी आशा, किस प्रत्याशा में,

तुम्हारा निस्वार्थ, किस स्वार्थ में,

वर्णमाला से ढाई मोती चुनकर ही

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।


मानव सुलभ द्वैष का अधिकार,

पौरुष प्रतीक क्रोधी स्वभाव छिनकर,

अंतराग्नि को अश्रुघारा से शमन हेतु

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।


क्या उनके निर्मल प्रेम का प्रतीक,

या तुम्हारे प्रेम की आवश्यकता,

क्या जरुरत आन पङी थी तुझे

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।


अविश्वास के अदृश्य जटिल तंतुजाल,

में विस्तारित विचित्र दावानल के मघ्य,

असह्य तपित जीवन मे, दहन से पुर्व

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।


क्या स्वप्न देख रखे थे तुमनें,

क्या संकीर्ण स्वार्थ की घाटी से उपर,

किसी अप्राप्त उद्देश्य की कामिनी

कहो, क्यों रखा मेरा ये नाम ।